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प्रेरणा| प्रेरक लेख

ख्वाइशों के पँख-बसन्त नायक, आईआईटी दिल्ली
ख्वाइशों के पँख-बसन्त नायक, आईआईटी दिल्ली
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stephanbonnar-1 - Copy

मेरे दोस्त !!

तुम्हे पत्थरउन्ही राहों पर मिलेंगे, जिन राहों पर सड़क का निर्माण होगा, क्योंकि सुख की अभिलाषा, थोड़े दुःख को तो आमंत्रित करेगी।सफलता-विफलता में लोग बदलते है,उनकी अवधारणाएँ भी बदलती है, लेकिंन सफल इंसान के जीवन में अनेक सफलता आती है, मगर उन सफलताओं को पाने के लिए अवसर बार-बार नही आते और जीवन की एक असफलता का मतलब सम्पूर्ण जीवन की विफलता नही है, हार का सबब हमेशा जीतना सिखाती है। टूटना ,बिखरना और फिर संभल जाना एक निराला खेल है।आध्यात्मिक शान्ति (खुद पर विजय) की अभिलाषा, तृष्णा से लेपित इंसान नही कर सकता है। यह तो एक काल्पनिक पानी का बुलबुला है, जो बनता है और अपनी पराकाष्ठा पर टूटकर बिखर जाता है, यह एक वृक्ष का बीज है, पहले धरा से लड़कर उसे चीरता हुआ बाहर आता है, फिर आकस्मिक ऋतू परिवर्तन, और वातावरण से लड़ता हुआ अनगनित नए वृक्षो को जन्म देता है। इतिहास वही लोग लिखते है, जो शेरों की भाँति संघर्ष करते हुए साहसी होने का परिचय देते है। वरना शोर करने के लिए तो खूब गीदड़ एवं गधे है। पत्थर को अनोखा आकार, विकार से ही मिलता है, अगर पत्थर में विकार नही होगा तो एक अद्भुत मूर्ति कैसे बनेगी? हर मीठी चीज अच्छी नहीं होती है और हर कड़वी चीज बुरी नहीं होती है, और मेहनत का ज़ायका कड़वा है, लेकिन परिणाम मीठा।

अपनी ख्वाइशों को, साँसों में ज़िंदा रखना ही बेहतर होगा,

मुर्दे तो साँस भी नही ले सकते है।

https://facebook.com/basant.nayak.93/

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