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जूही-गुलाबों सी बेटियाँ। कविता

ख्वाइशों के पँख-बसन्त नायक, आईआईटी दिल्ली
ख्वाइशों के पँख-बसन्त नायक, आईआईटी दिल्ली
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(०-१ साल )
मेरे घर चिड़ियाँ आई,
सबके चेहरे पे खुशियाँ लाई,
सब हँसते, वो दमदम रोती ,
ये देख नज़ारा,आँखे नम होती ,
ये मेरा कोरा कागज, मेरी अमिट परछाई,
लिखूँगा संस्कारों के अध्याय,जिसमें हो समुंद्री गहराई ,

(१-५ साल )
मेरे घर चिड़ियाँ आई,
सबके चेहरे पे खुशियाँ लाई,
पापा-पापा कहकर, मुझे हँसाए ,
झूले के खेल की खातिर ,घोड़ा बनाए ,
क्या ही अद्भुत नज़ारा है ,
उम्र किनारे कर, मन बच्चे सा आवारा है ,

(५-२० साल )
मेरे घर चिड़ियाँ आई,
सबके चेहरे पे खुशियाँ लाई,
सरस्वती का कमल अँकुरित हुआ ,
कोरा कागज अखरों से शिक्षित हुआ,
गुरु की महिमा, गुरु का ज्ञान संग रखना,
सादा जीवन, मन का अभिमान अपंग रखना,

(२०-२२ साल )
मेरे घर चिड़ियाँ आई,
सबके चेहरे पे खुशियाँ लाई,
बीते लम्हें बड़े ही अच्छे थे ,
थोड़े झूठे, थोड़े सच्चे थे,
चल उड़ जा पंछी, तेरा कोई ओर ठिकाना,
थोड़े लम्हें मुकलम हुए, अगले जन्म फिर से आना,
थोड़े लम्हें मुकलम हुए, अगले जन्म फिर से आना……

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